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Wednesday, September 25, 2013

छाँव इन्हीं की सारे तीरथ.....


     
  (चित्र ओपन बुक्स ऑन लाइन से साभार)


आल्हा छंद (16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु)

बीते कल ने  आने वाले , कल का थामा झुक कर हाथ
और कहा कानों में चुपके , चलना सदा समय के साथ ||

सत्-पथ पर पग नहीं धरा औ कदम चूम लेती है जीत
अधर  प्रकम्पित हुये नहीं औ , बात समझ लेती है प्रीत ||

है  स्पर्शों  की  भाषा न्यारी , जाने  सिखलाता  है कौन
बिन उच्चारण बिना शब्द के, मुखरित हो जाता है मौन ||

कहें  झुर्रियाँ  हमें  पढ़ो  तो , जानोगे  अपना  इतिहास
नहीं भटकना  तुम पाने को , कस्तूरी की मधुर सुवास ||

बड़े - बुजुर्गों  के   साये   में  ,  शैशव  पाता  है  संस्कार
जो आया की गोद पला हो , वह  क्या जाने लाड़-दुलार ||

बूढ़े   पर   हैं  अनुभव धारे, छू कर  पा लो उच्च उड़ान
छाँव  इन्हीं की  सारे  तीरथ , इनमें ही  सारे भगवान ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

12 comments:

  1. भावों को बहुत सुन्दरता से पिरोया है आपने इस रचना में. बहुत अच्छा लगा.

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  2. बढ़िया रचना
    आभार भाई जी-

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  3. है स्पर्शों की भाषा न्यारी , जाने सिखलाता है कौन
    बिन उच्चारण बिना शब्द के, मुखरित हो जाता है मौन ||
    ...वाह! लाज़वाब अभिव्यक्ति...

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  4. गहरी और सार्थक अभिव्यक्ति....

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  5. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक भाव लिए रचना...
    :-)

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  6. बड़े - बुजुर्गों के साये में , शैशव पाता है संस्कार
    जो आया की गोद पला हो , वह क्या जाने लाड़-दुलार ||

    आनंद क्या परमानंद की धार बहा दी आपने।

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  7. बड़े - बुजुर्गों के साये में , शैशव पाता है संस्कार
    जो आया की गोद पला हो , वह क्या जाने लाड़-दुलार ||

    आनंद क्या परमानंद की धार बहा दी आपने।

    हमारे समय का यह एक बड़ा विद्रूप है।

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  8. बीते कल ने आने वाले , कल का थामा झुक कर हाथ
    और कहा कानों में चुपके , चलना सदा समय के साथ ||
    बहुत सुन्दर भाव ,सुन्दर रचना
    नई पोस्ट साधू या शैतान
    latest post कानून और दंड

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  9. आदरणीय निगम सर,
    सुन्दर रचना के लिए बधाई ।

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  10. बूढ़े पर हैं अनुभव धारे, छू कर पा लो उच्च उड़ान
    छाँव इन्हीं की सारे तीरथ , इनमें ही सारे भगवान

    .........बहुत ही बेहतरीन और सार्थक भाव लिए रचना..

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  11. कहें झुर्रियाँ हमें पढ़ो तो , जानोगे अपना इतिहास
    नहीं भटकना तुम पाने को , कस्तूरी की मधुर सुवास || pate ki bat ...

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