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Friday, December 7, 2012

कुण्डलिया : प्रेम पात सब झर गये


पीपल अब सठिया गया,रहा रात भर खाँस
प्रेम पात सब झर गये , चढ़-चढ़ जावै साँस

 
चढ़- चढ़ जावै साँस , कहाँ वह हरियाली है
आँख  मोतियाबिंद , उसी की  अब लाली है


छाँह गहे अब कौन , नहीं रहि छाया शीतल
रहा रात भर खाँस, अब सठिया गया पीपल ||


 
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)

10 comments:

  1. बहुत अच्छे से समझ आई आपकी कही बात :):) बेहतरीन कुंडली

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  2. सठिया जाने पर मिले, यही रोग बेचैन
    खांसी सुन कर हो रहे, उनके क्रोधित नैन
    उनके क्रोधित नैन , नहीं कोई ठाँव बची
    प्रेम - पात के लिए , नहीं कोई आंच बची
    चलना दूभर हो गया ,हुआ जबसे गठिया
    चुप रहना ही बेहतर , गए हैं हम सठिया ।

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    1. :-)
      वाह वाह संगीता दी........
      बहुत बढ़िया...

      अनु

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    2. गीला आटा कर गया, बैरी गठिया वात
      हर कोई करने लगा,जली कटी सी बात
      जलीकटी सी बात,रही ना इज्जत बाकी
      चलनी करती सूप , संग ही टोकाटाकी
      झर जाए अब राम,उम्र का पत्ता पीला
      बैरी गठिया वात, कर गया आटा गीला ||

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  3. बेहद खूबसूरत रचना सर बधाई स्वीकारें

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  5. बेहतरीन ...
    लाजवाब कुंडली अरुण जी..
    सादर
    अनु

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  6. पीपल के जर जर उम्र दराज़ वृक्ष का जबरजस्त मानवीकरण ,उम्र के निशाँ छिपाए न छिपे यह निखार है काव्य में बिम्बों का जो एक बूढ़े को ला बिठाएं हैं पीपल की छाँव तले जहां अब छाँव कहाँ .

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  7. उमर पारकर साठ की,लगता सबको रोग
    सठियाएगे वो सभी ,कहते है जो लोग,,,,,

    recent post: बात न करो,

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  8. समय के साथ आए परिवर्तन को लिखा है ... जीवन के बदलाव को भी बाखूबी दिखा दिया साथ ही ...

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