कैसे –
कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
अपने सारे
हुये पराये प्राणप्रिये |
सच्चे की
किस्मत में तम ही आया है
अब तो
झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |
ज्ञान भरे घट जाने कितने
दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये
प्राणप्रिये |
भूखे - प्यासे हंसों
ने दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |
यहाँ राग - दीपक
की बातें करता था
वहाँ राग – दरबारी गाये
प्राणप्रिये |
सोने –
चाँदी की मुद्रायें
लुप्त हुईं
खोटे सिक्के
चलन में आये प्राणप्रिये
|
सच्चाई के पाँव
पड़ी हैं जंजीरें
अब तो बस भगवान बचाये
प्राणप्रिये |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर,
जबलपुर (म.प्र.)
इतनी सुन्दर गजल पर |
ReplyDeleteक्या कुछ कहे रविकर |
पैरोडी न हो जाये कहीं
इसीलिए चला चुप कर ||
सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
ReplyDeleteअब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |
दुखद है पर यही है
बहुत सुन्दर..गज़ल..अरुण जी..जन्म अष्टमी पर शुभकामनाएं |
ReplyDeleteज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
ReplyDeleteअधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |
सुन्दर,बहुत सुन्दर अरुण जी
वाह जी!
ReplyDelete--- शायद आपको पसंद आये ---
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3. तख़लीक़-ए-नज़र
खूबसूरत गजल...
ReplyDeleteसादर.
बहुत सुन्दर और सार्थकता लिए
ReplyDeleteशानदार गजल है सर जी....
बहुत बढ़िया:-)
सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें
ReplyDeleteअब तो बस भगवान बचाये प्राणप्रिये,,,
सार्थक सटीक बेहतरीन गजल के लिए,,,,बधाई अरुण जी,,,,
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
बहुत सुन्दर गज़ल........
ReplyDeleteकैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
ReplyDeleteअपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये
सटीक पंक्तियाँ
अब तो कुछ भी कहना शेष नहीं..उत्कृष्ट प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत खूब हुज़ूर
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