मनमीता
रंग-बिरंगे बाजारों में ,मत जाना ;बस छल बिकता है
झांझर,झूमर,चूड़ी,पायल, मायावी काजल बिकता है.
झूठी जगमग,झूठी ज्योति
नकली हीरे,नकली मोती
कागज के फूलों के गजरे
जिनमें खुशबू तनिक न होती.
माहुर,मेहंदी,टिकुली,बिंदिया
झुमका,बाला,कुमकुम डिबिया
सब बिकता है किंतु न बिकती
पल दो पल आँखों की निंदिया.
सब धन-दौलत की चाहत में, जाने क्या –क्या बेच रहे हैं
बंद बोतलों में मनमीता , गंगा जी का जल बिकता है.
बाजूबंद, बिछिया, अंगूठी
करधनिया भी मिले अनूठी
बिना लाज श्रृंगार अगर हो
सारी चीजें लगती झूठी.
लज्जा ,प्रेम ,क्षमा ,मुस्कानें
बाजारों में बिके तो जाने
जो सच्चे गहने पहचाने
वह क्यों छाने व्यर्थ दुकानें.
सब धन-दौलत के व्यापारी , जाने क्या-क्या बेच रहे हैं
मंदिर परिसर में मनमीता, तुलसी-दल, श्रीफल बिकता है.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
लज्जा ,प्रेम ,क्षमा ,मुस्कानें
ReplyDeleteबाजारों में बिके तो जाने
जो सच्चे गहने पहचाने
वह क्यों छाने व्यर्थ दुकानें....yahi to shashwat satya hai
बहुत ही बढि़या लिखा है आपने ..सार्थक व सटीक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत लाजबाब प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteकानों में भी संगीत झंकृत हो रहा है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,
'नाम जप' के विषय में अपने अमूल्य विचार
और अनुभव प्रस्तुत करके अनुग्रहित कीजियेगा.
सब बिकता है किंतु न बिकती
ReplyDeleteपल दो पल आँखों की निंदिया.
लज्जा ,प्रेम ,क्षमा ,मुस्कानें
बाजारों में बिके तो जाने
जो सच्चे गहने पहचाने
वह क्यों छाने व्यर्थ दुकानें.
यही नहीं मिलता दुकानों में . मन कि शांति होना ज़रुरी है ..बहुत अच्छी रचना
बेहतरीन सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteपरिवार सहित ..दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं
दीपावली के शुभ अवसर पर, चल अरुणिम देख छटा
ReplyDeleteदो नवगीतों को लेकर के, पूर्व-आभास घटा
राजगीर के दर्शनीय कर, नीरसता तनिक बटा
राम-राम भाई जी कहता, गिल्टी का रोग लटा
लिंक आपकी रचना का है
अगर नहीं इस प्रस्तुति में,
चर्चा-मंच घूमने यूँ ही,
आप नहीं क्या आयेंगे ??
चर्चा-मंच ६७६ रविवार
http://charchamanch.blogspot.com/
आज तो बस भावनाओं का व्यापार हो रहा है, इंसानियत की ख़रीद फ़रोख़्त हो रही है। सब दिखावा और झूठा ही है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता । श्रंगार के प्रतीकों के बीच भी पंक्तियाँ जीवन के यथार्थ का अहसास करा जाती हैं .. । मुझे कवि जीवन यदु के प्रसिद्ध गीत . जब तक रोटी के प्रश्नों पर .. की याद आ गई ।
ReplyDeleteसब धन-दौलत के व्यापारी , जाने क्या-क्या बेच रहे हैं
ReplyDeleteमंदिर परिसर में मनमीता, तुलसी-दल, श्रीफल बिकता है.
धर्म भी व्यापार बन गया है !!
सशक्त अभिव्यक्ति!
ReplyDelete“सजा धजा बाजार है, धन दौलत आधार
ReplyDeleteसदा फला संसार में, भावों का व्यापार”
विचारोत्प्रेरक/बढ़िया गीत अरुण भाई...
आपको सपरिवार दीपावली की बधाइयां....
लज्जा ,प्रेम ,क्षमा ,मुस्कानें
ReplyDeleteबाजारों में बिके तो जाने
जो सच्चे गहने पहचाने
वह क्यों छाने व्यर्थ दुकानें
आधुनिकता नैतिक मूल्यों और संस्कृति को निगल रही है।
बहुत बढि़या सामयिक गीत।
बधाई निगम जी !
सामयिक गीत है ... धार मय ... लय मय ... लाजवाब ...
ReplyDeleteसच है अब तो सब बिकता है, पर अब भी कुछ बचे हैं...
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
दिवाली कि हार्दिक शुभकामनायें!
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत अच्छी रचना सार्थक सन्देश लिए हुए,बधाई !
ReplyDeleteलाजवाब...
ReplyDeleteआपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
MADHUR VAANI
MITRA-MADHUR
BINDAAS_BAATEN
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteपञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
रंग-बिरंगे बाजारों में ,मत जाना ;बस छल बिकता है
ReplyDeleteझांझर,झूमर,चूड़ी,पायल, मायावी काजल बिकता है...bhaut hi sundar bhaav aur shabdo se rachi purn yatharth ki purn rachna....
Sateek baat..
ReplyDeletebeautifully composed !!
ReplyDeleteenjoyed it :)
बहुत ही बढि़या सार्थक व सटीक अभिव्यक्ति ।
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