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Monday, July 18, 2011

एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ


एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये  एकाकी से अपनत्व हुआ.

हृदय - धरातल पर होते हैं भाव अंकुरित
नयन-नीर से होता है वह पुष्प पल्लवित
पुष्प जिसे जग ने संज्ञा दी प्रेम-पुष्प की
प्रेम वही जिसे प्राप्त यहाँ अमरत्व हुआ.

एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये  एकाकी से अपनत्व हुआ.

शून्य ब्रह्म हो जहाँ नहीं,सविता हो कैसे
प्रेरक रत्नावली नहीं  – कविता हो कैसे
प्रेमहीन ! सम्बोधन का पर्याय “असम्भव”
प्रेम-भाव ही  जग में जीवन-सत्व हुआ.

एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये  एकाकी से अपनत्व हुआ.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

16 comments:

  1. बहुत सुंदर भाव संजोये हैं आपने.बधाई

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  2. ये हुई न बात ||
    एकाकी पन की सौगात ||
    दुनिया की आधी रचनाएं,
    लेख, बात, बे-बात ||

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  3. बेहतरीन रचना बधाई अरूण जी।

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  4. बहुत सुन्दर भाव्।

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  5. बहुत सुन्दर रचना
    दार्शनिक भी
    वास्तविक भी
    काव्य के सभी तत्त्वों को समाहित करती हुई...........



    शून्य ब्रह्म हो जहाँ नहीं,सविता हो कैसे
    प्रेरक रत्नावली नहीं – कविता हो कैसे
    प्रेमहीन ! सम्बोधन का पर्याय “असम्भव”
    प्रेम-भाव ही जग में जीवन-सत्व हुआ.



    उपरोक्त पंक्तियाँ बहुत कुछ समेटे हुए हैं।


    सच में गागर में सागर
    सुन्दर शब्द-संयोजन.....

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  6. बहुत उम्दा भाव-प्रणव प्रस्तुति!

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  7. एकाकी से अपनत्व ... गहन भावों को समेटे अच्छी रचना ..

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  8. आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचना !

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  9. bahut sunder bhav liye anoothi kavitaa.badhaai aapko.




    please visit my blog.thanks.

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  10. बहुत सुन्दर भाव्।

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  11. मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    ' नीम ' पेड़ एक गुण अनेक..........>>> संजय भास्कर
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2011/07/blog-post_19.html

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  12. आपके ब्लॉग में आकर अच्छा लगा अरुण भाई...
    बड़े सुन्दर रचनाएं हैं....
    सादर...

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  13. बहुत अच्छे भाव लिए हुए उत्कृष्ट रचना

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