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Thursday, September 19, 2024

कुण्डलिया छन्द

चंदा में रोटी....


रोटी में चन्दा दिखे, श्वेत घटा में खीर।

नहीं सता सकती हमें, किसी तरह की पीर।।

किसी तरह की पीर, नहीं हम पाला करते।


जैसे हों हालात, स्वयं को ढाला करते।।


इच्छाओं को पाल, कहो तुम किस्मत खोटी।


हम तो हैं खुशहाल, देख चन्दा में रोटी।।


अरुण कुमार निगम

दुर्ग

Friday, February 2, 2024

फरवरी

 "वासंती फरवरी"


कम-उम्र बदन से छरहरी

लाई वसंत फिर फरवरी।


शायर कवियों का दिल लेकर

शब्दों का मलयानिल लेकर

गाती है करमा ब्याह-गीत

पंथी पंडवानी भरथरी

लाई वसंत फिर फरवरी।


गुल में गुलाब का दिवस लिए

इक प्रेम-दिवस भी सरस लिए

है पर्यावरण प्रदूषित पर

बातें इसकी हैं मदभरी

लाई वसंत फिर फरवरी।


इसकी भी अपनी हस्ती है

इसमें मेलों की मस्ती है

नमकीन मधुर कुछ खटमीठी

थोड़ी तीखी कुछ चरपरी

लाई वसंत फिर फरवरी।


यह बारह भाई-बहनों में

इकलौती सजती गहनों में

यूँ आती यूँ चल देती है

बस नजर डाल कर सरसरी

लाई वसंत फिर फरवरी।


सुख शेष कहाँ अब जीवन में

घुट रही साँस वातायन में

कुछ राहत सी दे जाती है

बन स्वप्न-लोक की जलपरी

लाई वसंत फिर फरवरी।


रचनाकार - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग

छत्तीसगढ़