"महँगाई"
पक्ष-विपक्ष के समीकरण में, महँगाई के दो चेहरे हैं
एक समर्थन में मुस्काता और दूसरे पर पहरे हैं।।
एक राष्ट्र-हित में बतलाता, वहीं दूसरा बहुत त्रस्त है
एक प्रशंसा के पुल बाँधे, दूजे का तो बजट ध्वस्त है।।
रोजगार की बात न पूछो, वह गलियों में भटक रहा है
उसको कल की क्या चिंता है, डीजे धुन पर मटक रहा है।।
उच्च-वर्ग की सजी रसोई, मिडिल क्लास का चौका सूना
कार्पोरेटी रेट बढ़ा कर, कमा रहे हैं हर दिन दूना।।
मध्यम-वर्ग अकेला भोगे, महँगाई की निठुर यातना
कौन यहाँ उसका अपना है, जिसके सम्मुख करे याचना।।
सत्ता-सुख की मदिरा पीकर, मस्त झूमता है सिंहासन
उसे समस्या से क्या लेना, उसको प्यारा केवल शासन।।
अंकुश से है मुक्त तभी तो, सुरसा-सी बढ़ती महँगाई
अंक-गणित, प्रतिशत से बोलो, कभी किसी की हुई भलाई।।
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर दुर्ग छत्तीसगढ़
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (08 -10-2021 ) को 'धान्य से भरपूर, खेतों में झुकी हैं डालियाँ' (चर्चा अंक 4211) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
मध्यम-वर्ग अकेला भोगे, महँगाई की निठुर यातना
ReplyDeleteकौन यहाँ उसका अपना है, जिसके सम्मुख करे याचना।।
बहुत ही उम्दा व हृदयस्पर्शी रचना
एक राष्ट्र-हित में बतलाता, वहीं दूसरा बहुत त्रस्त है
ReplyDeleteएक प्रशंसा के पुल बाँधे, दूजे का तो बजट ध्वस्त है।।
रोजगार की बात न पूछो, वह गलियों में भटक रहा है
उसको कल की क्या चिंता है, डीजे धुन पर मटक रहा है।।
बहुत ही सुंदर
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