चुटकुलों से हँसाने लगे हैं।
मंच पे खूब छाने लगे हैं।।
इल्म तो है नहीं शायरी का।
खुद को ग़ालिब बताने लगे हैं।।
हुक्मरानों पे पढ़ के कसीदे।
खूब ईनाम पाने लगे हैं।।
मसखरे लॉबियों में परस्पर।
रिश्ते-नाते निभाने लगे हैं।।
जुगनुओं की हिमाकत तो देखो।
आँख "अरुण" को दिखाने लगे हैं।।
- अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग, छत्तीसगढ़
बड़ सुग्घर गजल आदरणीय
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