छंद सरसी
[16, 11 पर यति, कुल 27 मात्राएँ , पदांत में गुरु लघु]
[16, 11 पर यति, कुल 27 मात्राएँ , पदांत में गुरु लघु]
चाक निरंतर रहे घूमता , कौन बनाता देह |
क्षणभंगुर होती है रचना , इससे कैसा नेह ||
जीवित करने भरता इसमें , अपना नन्हा भाग |
परम पिता का यही अंश है , कर इससे अनुराग ||
हरपल कितने पात्र बन रहे, अजर-अमर है
कौन |
कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है , उत्तर लेकिन मौन ||
कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है , उत्तर लेकिन मौन ||
एक बुलबुला बहते जल का , समझाता है यार |
छल-प्रपंच से बचकर रहना, जीवन के दिन चार ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
नई विधा -
ReplyDeleteअच्छा पिरोया है भावों को
आभार भाई जी ||
एक बुलबुला बहते जल का , समझाता है यार |
ReplyDeleteछल-प्रपंच से बचकर रहना, जीवन के दिन चार ||
Bahut Sunder....
चाक निरंतर रहे घूमता , कौन बनाता देह |
ReplyDeleteक्षणभंगुर होती है रचना , इससे कैसा नेह || ... सच कहा
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteहरपल कितने पात्र बन रहे, अजर-अमर है कौन |
ReplyDeleteकोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है , उत्तर लेकिन मौन ||
bahut behtar
छंद सरसी में लिखने का छोटा सा प्रयास ,,,
ReplyDeleteजीवन मिलता है मुसकिल से,करो जरूरी काम
वर्ना फ़िर समय नही मिलेगा,हो जायेगी शाम,,,,,
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आदरणीय गुरुदेव श्री छंद सरसी का ज्ञान एवं रचना का आनंद देने हेतु सादर आभार. प्रस्तुति बहुत ही सुन्दर है हार्दिक बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसहज सार्थक लयात्मक पोस्ट गेयता ही गेयता .प्रवाह निश्छल वेगवती काव्य धारा बन उमड़ा है .आभार आपकी टिपण्णी का .आपकी टिपण्णी हमारी शान है .
ReplyDeletebehatareen, satik aur sarthak prastuti,
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteजीवित करने भरता इसमें , अपना नन्हा भाग |
ReplyDeleteपरम पिता का यही अंश है , कर इससे अनुराग ||
हरपल कितने पात्र बन रहे, अजर-अमर है कौन |
कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है , उत्तर लेकिन मौन ||
दार्शनिक विचारों को स्वर देता प्रवाहयुक्त सुंदर छंद की सशक्त पंक्तियां।