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Tuesday, February 26, 2013

छंद सरसी


छंद सरसी
[16, 11 पर यति, कुल 27 मात्राएँ , पदांत में गुरु लघु]

चाक  निरंतर  रहे  घूमता , कौन  बनाता   देह |
क्षणभंगुर  होती  है  रचना  ,  इससे  कैसा  नेह ||

जीवित करने भरता इसमें ,  अपना नन्हा भाग |
परम पिता का यही अंश है , कर  इससे अनुराग ||

हरपल कितने पात्र बन रहे, अजर-अमर है कौन |
कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है   , उत्तर लेकिन मौन ||

एक बुलबुला बहते जल का   समझाता है यार |
छल-प्रपंच से बचकर रहना, जीवन के दिन चार ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

12 comments:

  1. नई विधा -
    अच्छा पिरोया है भावों को
    आभार भाई जी ||

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  2. एक बुलबुला बहते जल का , समझाता है यार |
    छल-प्रपंच से बचकर रहना, जीवन के दिन चार ||
    Bahut Sunder....

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  3. चाक निरंतर रहे घूमता , कौन बनाता देह |
    क्षणभंगुर होती है रचना , इससे कैसा नेह || ... सच कहा

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  4. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  5. हरपल कितने पात्र बन रहे, अजर-अमर है कौन |
    कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है , उत्तर लेकिन मौन ||
    bahut behtar

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  6. छंद सरसी में लिखने का छोटा सा प्रयास ,,,

    जीवन मिलता है मुसकिल से,करो जरूरी काम
    वर्ना फ़िर समय नही मिलेगा,हो जायेगी शाम,,,,,


    Recent Post: कुछ तरस खाइये

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  7. आदरणीय गुरुदेव श्री छंद सरसी का ज्ञान एवं रचना का आनंद देने हेतु सादर आभार. प्रस्तुति बहुत ही सुन्दर है हार्दिक बधाई स्वीकारें

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  8. बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति...

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  9. सहज सार्थक लयात्मक पोस्ट गेयता ही गेयता .प्रवाह निश्छल वेगवती काव्य धारा बन उमड़ा है .आभार आपकी टिपण्णी का .आपकी टिपण्णी हमारी शान है .

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  10. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  11. जीवित करने भरता इसमें , अपना नन्हा भाग |
    परम पिता का यही अंश है , कर इससे अनुराग ||

    हरपल कितने पात्र बन रहे, अजर-अमर है कौन |
    कोलाहल-सा खड़ा प्रश्न है , उत्तर लेकिन मौन ||

    दार्शनिक विचारों को स्वर देता प्रवाहयुक्त सुंदर छंद की सशक्त पंक्तियां।

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