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Saturday, October 6, 2012

नारी – मत्तगयंद छंद सवैया


[ मत्तगयंद सवैया – 7 भगण तथा अंत में 2 गुरु यानि  7 SII ,2 SS ]
 

तू जग की जननी  बनके,  ममता दुइ हाथ लुटावत नारी

नेहमयी भगिनी बनके, यमुना - यम नेह सिखावत नारी

शैलसुता बन शंकर का,  तप-जाप करे सुख पावत नारी

हीर बनी जब राँझन की, नित प्रेम -सुधा बरसावत नारी ||

 

तू लछमी सबके घर की , घर - द्वार सजात बनावत नारी

तू जग में बिटिया बनके , घर आंगन को महकावत नारी

कौन कहे तुझको अबला,अब जाग जरा मुसकावत नारी

वंश चले तुझसे दुनियाँ, तुझ सम्मुख शीश नवावत नारी ||

 

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)

70 comments:

  1. मन माफिक वर वरताव नहीं, फिर से ससुरार न जावत नारी ।
    पति मिल जाय अदालत मा, तब डीजल डाल जलावत नारी ।
    घर में अनबन होय जाय तनिक, लरिकन का जहर पिलावत नारी ।
    सबला कब की बन आय जमी, अब लौं अबलाय कहावत नारी ।।

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    1. नेह समर्पण भूल गई, अब तो जब स्वयं कमावत नारी ।

      भोजन नित रही पकावत तब, अब हमका रोज पकावत नारी ।

      रूप निरूपा राय बदल, अब तक माँ रही कहावत नारी ।

      मलिका के रस्ते राखी जब, कैसे नर शीश नवावत नारी ।।

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    2. वाह आदरणीय रविकर जी
      नारी के नकारात्मक पहलु पर आपने गजब का गुदगुदाता प्रहार किया है
      आपने तो हास्यमय कर दिया आपकी दोनों टिपण्णी अपने आप में एक सम्पूर्ण रचना हो गई
      नारी शक्ति सभी कहें,पुरुष शक्ति नहि कोय|
      बिन नारी संग नर नहि, आधा अधुरा होय||

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    3. जी आदरणीय उमा जी-
      मत्तगयन्द की तर्ज पर गुनगुनाया-
      रचना और टिप्पणी सब, कुछ मूल रचना के प्रकाशन के तुरंत बाद दस मिनट में किया |
      बहुत saari अशुद्धियाँ हैं जनता हूँ-
      इसीलिए OBO में पोस्ट नहीं किया -
      सादर ||

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    4. शुद्धि अशुद्धि है मगर ,पहलू एक हि पात
      छान छान पी जाइये, बन हंसों की जात
      प्रिय रविकर जी
      बिना अशुद्धि के बिना दुनियाँ में कुछ नहीं होता
      प्रत्येक धातु अनेकों शोधन के उपरांत शुद्ध होती हैं

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    5. आग मिली उजियार करो, बिन आग नहीं जग जीवन भाई
      आप जलाय दिये घर को,अब दोष दिये पर डाल न भाई
      नीर मिला बुझ प्यास गई , यदि डूब गये तब कौन बचाई
      वायु मिली तब साँस चली, अब अंधड़ को मत कोस गुसाई ||

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    6. वाह आदरणीय अरुण जी वाह
      इतने सुन्दर और सरल एवं सहज सवैय्ये के
      द्वारा आपने आ.रविकर जी के सवैय्ये पर बेहेतरिन प्रति टिपण्णी की है
      आपने बिलकुल सही कहा है
      आग पानी वायु पृथ्वी आकाश ये पञ्च तत्व हमें जीवन देते है
      कोई जल मरे या डूब मरे तो इसमें इनका क्या दोष
      आपकी ये सकारात्मक प्रस्तुति ने दिल जीत लिया है
      सटीक प्रतिक्रिया

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    7. पाहन मान दिखै पथरा , भगवान कहै दिखते रघुराई
      भाव कुभाव यथा मन में,प्रभु मूरत देखि तथा सुन भाई
      पूजत देव जिसे सगरै, दिन रात जपैं जिसको मन माही
      जोत जलावत राह दिखै अरु जीवन की मिट जाय सियाही ||

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    8. बन्दौं सूर्पनखा कैकेई | धाय मन्थरा जैसी देई |
      धारावाहिक रहे घसिटते | इनके कारण नाहक पिटते|

      घर घर में यह कलह कराती | राग हमेशा अपना गाती |
      दो पैसे गर घर में लाती | सब पर अपना हुकुम चलाती |

      बराबरी की बात कर रही | बेहतर सुविधा मांग धर रही |
      इनको हम देवी क्यूँ माने | सुने सदा क्यूँ इनके ताने |

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    9. बात हमें तो समझ न आई |
      किस किस को बंदत हो भाई ||
      क्या दिल पर कुछ चोट है खाई |
      या बिगड़ी है बनी बनाई ||
      क्योंकर रविकर का दिल चीखा |
      आज मिला क्या केवल तीखा ||
      मीठी मधुर जलेबी खाओ |
      फिर भैया आकर टिपियाओ ||

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    10. नजर के बदलने से नज़ारे बदल जाते है
      आदरणीय
      कूबत हममें है नहीं, धारे गर्भित अंग
      पाँच किलो के भार को,नौ महिना ले संग

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    11. रविकरOctober 6, 2012 10:04 AM

      नेह समर्पण भूल गई, अब तो जब स्वयं कमावत नारी ।
      भोजन नित रही पकावत तब, अब हमका रोज पकावत नारी ।
      रूप निरूपा राय बदल, अब तक माँ रही कहावत नारी ।
      मलिका के रस्ते राखी जब, कैसे नर शीश नवावत नारी ।।
      *******************************************
      *******************************************
      चूल्हा घर में फूँकती , करने जाती काम
      जरा सोच कर देखिये , कब पाती आराम
      कब पाती आराम ,नित्य ही जाती दफ्तर
      बन कर एक मशीन, बढ़ाती जीवन स्तर
      ठाठ भोगते आज तलक तुम बनकर दूल्हा
      नारी करती काम , फूँकती फिर भी चूल्हा ||

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    12. वाह आदरणीय अरुण जी आपने तो हमारे दिल से आह निकाल दिया
      गजब की प्रतिक्रिया वो भी कुंडली के रूप में
      आज तो अनोखा अंदाज दिख रहा है
      न्यूटन का तीसरा नियम काम कर रहा है
      क्रिया पर प्रतिक्रिया वो भी बराबर किन्तु विपरीत
      जय हो आदरणीय

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  2. वाह आदरणीय अरुण जी
    नारी शक्ति की इतनी सुन्दर प्रस्तुति वाह क्या कहने है
    जग की जननी ,दोनों हाथो से प्रेम व ममता लुटाने वाली "नारी शक्ति"
    बहन के रूप में प्यार करने वाली यमराज के मन में प्रेम प्रवाहित करने वाली नारी शक्ति के विस्तृत चरित्रों का बखान अति लुभावन मन भावन हैं
    आपका ये मत्तगयंद छंद सवैया हर दृष्टिकोण से परिपूर्ण है
    लय में पढ़ने में एक अलग आनंद की अनुभूति कराता सवैय्या के लिए हार्दिक बधाई

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  3. आदरणीय अरुण जी आपका ये सवैय्या अत्यंत लुभावन है
    आपने नारी की दिव्यता को प्रमाणित करते हुवे
    नारी के अदभुत स्वरुप एवं चित्र को उजागर किया है
    आपकी इस रचना को देवी शक्ति की स्तुति के रूप में भी किया जा
    सकता है निश्चित रूप से माँ प्रसन्न होगी इस उत्तम प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई

    बिना तार वीणा नहीं,बिना धुरी नहि चाक
    पुरुष अकेला क्या करे,बिन नारी नहि पाक

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    1. नारी को कोई नहीं, सका है अब तक ताड़ |
      धुरी नहीं सुधरी सखे, हर दिन बढे बिगाड़ |

      हर दिन बढे बिगाड़ , यही तिल ताड़ बनावें |
      दलती छाती मूंग, पुरुष को नित उक्सावें |

      पुरुष गर्भ को धार, आज सब करे तैयारी |
      त्याग समर्पण ख़त्म, पूजिए क्यूँकर नारी ||

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    2. पूर्ण मर्द न कोई नर, कुछ नारी का अंश
      नारी हि परिपूर्ण है, इसमें न कोइ संश

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    3. आदरणीय अरुण जी
      सादर समर्पित
      मैत्रीय गार्गी स्त्रियाँ, ऋषि मुनिन जस ज्ञान
      शास्त्र ज्ञान से है भरी, भारत की है शान
      नारी स्वर वीणा बजे, कोकिल इनकी तान
      रमणी है झकझोरती ,हिय कामुक हो प्रान
      तिय पिय को प्रिय लागति,तिय तिरिया को स्वांग
      तिरिया न चरितार्थ कर, ब्रम्ह निहारत आंग
      अगना याने अंग है ,जीवन का सम भाग
      ललना ममता धड़कने, बाबुल को दे त्याग
      भामिनी चंचल रुप में, भ्रमण करे ब्रम्हांड
      रूद्र रूप जब धारती, बिफरे जैसे सांड
      वनिता विनम्र रहे सदा, सुख संयम की खान
      लुट कर नारी धर्म में, तजती अपने प्राण
      धुरी में रह के घिसती, घर्षण घर के धार
      सह जाती चुप चाप है, रुदन मनन में डार
      अबला मासूम रुप है, सह सह दुःख की आग
      कहीं सावित्री देख के ,यम भी जाता भाग

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    4. बढ़िया आदरणीय उमा जी-

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    5. UMA SHANKER MISHRA

      बिना तार वीणा नहीं,बिना धुरी नहि चाक
      पुरुष अकेला क्या करे,बिन नारी नहि पाक
      *****************************
      स्वेद बहे मुख - माथ से,तब बनते पकवान |
      बैठे - बैठे खाय है , सैंया बे-ईमान ||

      भाई उमा शंकर जी, खूबसूरत दोहे पर बधाई स्वीकार करें.......

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    6. रविकरOctober 6, 2012 1:02 PM

      नारी को कोई नहीं, सका है अब तक ताड़ |
      धुरी नहीं सुधरी सखे, हर दिन बढे बिगाड़ |

      हर दिन बढे बिगाड़ , यही तिल ताड़ बनावें |
      दलती छाती मूंग, पुरुष को नित उक्सावें |

      पुरुष गर्भ को धार, आज सब करे तैयारी |
      त्याग समर्पण ख़त्म, पूजिए क्यूँकर नारी ||
      **********************************
      **********************************
      बड़ी अनोखी बात है , यह कैसा संदर्भ ?
      सुनकर ही अचरज लगे , पुरुष धारता गर्भ
      पुरुष धारता गर्भ ,समर्पण - त्याग ढूँढिये
      प्रकृति के प्रतिकूल न,एक भी काम कीजिये
      देखो खाकर मूँग - दाल तड़के की चोखी
      रविकर जी क्यों बात,आज की बड़ी अनोखी ||

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    7. UMA SHANKER MISHRAOctober 6, 2012 4:49 PM

      पूर्ण मर्द न कोई नर, कुछ नारी का अंश
      नारी हि परिपूर्ण है, इसमें न कोइ संश
      ****************************
      ****************************
      नारी ही परिपूर्ण है , लाख टके की बात |
      शत्-प्रतिशत सहमत हुए,तुमसे प्यारे भ्रात ||

      Delete
    8. UMA SHANKER MISHRAOctober 6, 2012 9:38 PM

      आदरणीय अरुण जी
      सादर समर्पित
      मैत्रीय गार्गी स्त्रियाँ, ऋषि मुनिन जस ज्ञान
      शास्त्र ज्ञान से है भरी, भारत की है शान
      नारी स्वर वीणा बजे, कोकिल इनकी तान
      रमणी है झकझोरती ,हिय कामुक हो प्रान
      तिय पिय को प्रिय लागति,तिय तिरिया को स्वांग
      तिरिया न चरितार्थ कर, ब्रम्ह निहारत आंग
      अगना याने अंग है ,जीवन का सम भाग
      ललना ममता धड़कने, बाबुल को दे त्याग
      भामिनी चंचल रुप में, भ्रमण करे ब्रम्हांड
      रूद्र रूप जब धारती, बिफरे जैसे सांड
      वनिता विनम्र रहे सदा, सुख संयम की खान
      लुट कर नारी धर्म में, तजती अपने प्राण
      धुरी में रह के घिसती, घर्षण घर के धार
      सह जाती चुप चाप है, रुदन मनन में डार
      अबला मासूम रुप है, सह सह दुःख की आग
      कहीं सावित्री देख के ,यम भी जाता भाग
      ***********************************
      ***********************************
      प्रिय श्री उमा शंकर मिश्रा जी..

      क्या ही सुंदर छंद हैं, क्या ही सुंदर भाव
      दोहों में है झलकता,इक युग का बदलाव ||

      दोहे रचकर बंधुवर ,नेक किया है कार्य
      चुन चुन लाए शब्द जो नारी के पर्याय ||

      आभार................

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  4. बहुत सुन्दर रचना अरुण जी....
    आपका आभार.

    सादर
    अनु

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  5. वाह: बहुत सुन्दर...अरुण जी आभार..

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  6. नारी के हर रूप को समेट लिया है अपनी रचना में ... बहुत सुंदर

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  7. कौन कहे तुझको अबला,अब जाग जरा मुसकावत नारी
    वंश चले तुझसे दुनियाँ, तुझ सम्मुख शीश नवावत नारी,,,,,

    भावों से परिपूर्ण बेहतरीन सवैया,,,,,लाजबाब प्रस्तुति अरुण जी,,,,बधाई....

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    Replies
    1. बदला युग आधुनिक अब, बढ़ा सास-बधु प्यार ।
      दस वर्षों का ट्रेंड नव, शेष बहस तकरार ।

      शेष बहस तकरार, शक्तियां नारीवादी ।
      दी विश्वास-उभार, मस्त आधी आबादी ।

      पुत्र-पिता-पति-भ्रातृ, पडोसी प्रियतम पगला।
      लेगी इन्हें नकार, जमाने भर का बदला ।।

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    2. सास-बहू के बीच में,क्यों पड़ते हो यार
      ये तो अच्छी बात है, होने भी दो प्यार
      होने भी दो प्यार , है टूटा ट्रेंड पुराना
      कर लीजे इकरार ,है आया नया जमाना
      गूँजे स्वर हर रोज ,बाग में कुहू-कुहू के
      क्यों पड़ते हो यार,बीच में सास-बहू के ||

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    3. आदरणीय धीरेंद्र जी, बहुत बहुत आभार. इन्हीं दो पंक्तियों के लिए तो पूरी रचना लिखी गई है..............

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  8. आभार आदरणीय शास्त्री जी............

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  9. भाव अर्थ गति और रूपक की गत्यात्मक व्यंजना साकार हुई सांगीतिक आवेग के साथ .
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

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  10. तू जग की जननी बनके, ममता दुइ हाथ लुटावत नारी
    नेहमयी भगिनी बनके, यमुना - यम नेह सिखावत नारी
    शैलसुता बन शंकर का, तप-जाप करे सुख पावत नारी
    हीर बनी जब राँझन की, नित प्रेम -सुधा बरसावत नारी ||

    तू लछमी सबके घर की , घर - द्वार सजात बनावत नारी
    तू जग में बिटिया बनके , घर आंगन को महकावत नारी
    कौन कहे तुझको अबला,अब जाग जरा मुसकावत नारी
    वंश चले तुझसे दुनियाँ, तुझ सम्मुख शीश नवावत नारी ||
    भाव अर्थ गति और रूपक की गत्यात्मक व्यंजना और अन्विति साकार हुई सांगीतिक आवेग के साथ .
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    रविवार, 7 अक्तूबर 2012
    कांग्रेसी कुतर्क

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  11. जय हो अरुण भाई जी की -
    आदरणीय उमा जी की सुन्दर सटीक प्रस्तुति |
    बधाइयां |
    धीर जी आपका जबरदस्त दोहा -
    जमा है रंग -

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  12. नारीवादी शक्तियां, हैं बेहद मजबूत |
    दिन प्रतिदिन आगे बढ़ें, शुभ साइत आहूत |
    शुभ साइत आहूत, पुरुष को दुश्मन समझें |
    कर नफ़रत आकंठ, सभी से सीधे उलझें |
    शत्रु नारि की नारि, रार पुरुषों से भारी |
    नारी वाद विचार, आज की पोसे नारी ||

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    1. शोषण बरसों से किया , देते आये शूल
      अब जब जागीं शक्तियाँ,क्यों लागे प्रतिकूल
      क्यों लागे प्रतिकूल,समर्थन निश्चित दीजे
      बरसों का मन-पाप,सखा प्रायश्चित कीजे
      नार शक्ति का रूप,जगत का करती पोषण
      सहती आई शूल, हुआ बरसों से शोषण ||

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  13. पुरुष प्रताड़ित हो रहे, लगभग झूठे केस |
    जेल भेज परिवार को, पाले नफरत द्वेष |
    पाले नफरत द्वेष, बने सावित्री काहे |
    सत्यवान की मृत्यु, जानती निश्चित आहे |
    पांचाली का दोष, चिढ़ाती दुर्योधन को |
    खुद ही जिम्मेदार, न्यौतती चीर-हरण को ||

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    1. बोलो किसके वास्ते ,तीजा करवाचौथ
      कैसे भी पतिदेव हों,वही टालती मौत
      वही टालती मौत,मन्नतें करके सूखी
      धर्म-कर्म संस्कार,पालती रहकर भूखी
      अपवादों को आप,तराजू में मत तोलो
      कड़ुवाहट को त्याग,आज से मीठा बोलो ||

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  14. सम्पत्ती पच्चीस की, रही पिता के पास |
    देते चार दहेज़ में, कर खुद पर विश्वास |
    कर खुद पर विश्वास, पुत्र अब साथ कमाता |
    नियमित करके योग, सम्पत्ति दो सौ पहुँचाता |
    इधर पिता मर जाँय, उधर घर भी बँट जाता |
    बहना छीने सौ , और जीजा धमकाता ||

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    1. धन-सम्पति का मामला,विधि-विधान की बात
      न्यायालय का क्षेत्र है,क्यों उलझे हो तात
      क्यों उलझे हो तात,जरा इतना तो सोचो
      लाया कौन "दहेज" , परम्परा को कोसो
      कारण रही कुरीति, हमेशा ही दुर्गति का
      विधि-विधान की बात,मामला धन-सम्पति का ||

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    2. वाद-विवाद है चल रहा,समझें नहीं विवाद
      सुलझे कोई मामला , जब होवे संवाद
      जब होवे संवाद , तभी हल निकले कोई
      खरपतवार को फेंक , काटिये उत्तम बोई
      मक्खन मंथन से निकला पावन प्रसाद है
      समझें नहीं विवाद,चल रहा वाद-विवाद है ||

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  15. सार्थक पोस्ट.....

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    1. आदरेया, लम्बे समय के बाद आपकी उपस्थिति ने आल्हादित कर दिया.आभार.

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  16. नारी के विभिन्न रूपों की अपनी अहमियत है. सुंदर प्रस्तुति.

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  17. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति |

    नारी के ही एक रूप को मैंने भी दिखने की कोशिश की है | कृपया देखें और मार्गदर्शन करें |
    नई पोस्ट:- वो औरत

    आभार |

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    Replies
    1. आदरणीय ई.प्रदीप कुमार साहनी, बहुत-बहुत आभार.

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  18. शैलसुता बन शंकर का, तप-जाप करे सुख पावत नारी
    हीर बनी जब राँझन की, नित प्रेम -सुधा बरसावत नारी ||


    bhai nigam sahab bahut hi sundar chhand padhane ko mila behad prabhavshali rachana lagi ....ravikar ji ki rachana bhi padhi ....bs apki rachana padh kr aanand aa gya ...aabhar sir .

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  19. वाह वह अरुण जी बहुत ही खूबसूरत लिखा है बधाई आपको ओ बी ओ पर क्यूँ नहीं पोस्ट किया अभी तक

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    Replies
    1. बहुत-बहुत आभार आदरेया. अपरिहार्य कार्यालयीन व्यस्ततावश ओबीओ पर नहीं आ सका.

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  20. तू लछमी सबके घर की , घर - द्वार सजात बनावत नारी
    तू जग में बिटिया बनके , घर आंगन को महकावत नारी
    कौन कहे तुझको अबला,अब जाग जरा मुसकावत नारी
    वंश चले तुझसे दुनियाँ, तुझ सम्मुख शीश नवावत नारी ||
    बहुत सुन्दर लिखा आपने...हार्दिक बधाईयां एवं शुभ कामनाएं

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    Replies
    1. आदरणीय सत्य प्रकाश जी, हृदय से आभार.

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  21. --- सुन्दर सवैया, भाव व विषय एवं प्रस्तुति....
    ---बहुत सुन्दर वाद-विवाद चल रहा है नारी पर .... यह विषय है ही विविध-रंगों व्यंजनाओं की...मानवता का सबसे बड़ा यक्ष-प्रश्न ....
    ---जहाँ तक तकनीकी बात---अच्छा सवैया है ..गण आदि भी .. परन्तु ..प्रथम पंक्ति से ही ..भाषिक-व्याकरणीय दोष है... जो अधिकाँश पंक्तियों में है..
    ----तू जग की जननी बनके, ममता दुइ हाथ लुटावत नारी.
    -- जब नारी को संबोधन है(तू) तो अंत में नारी शब्द की पुनरावृत्ति त्रुटि-पूर्ण है क्योंकि यह नारी शब्द समष्टि को संबोधन हुआ ...
    -----वस्तुतः गण आदि पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने से ये त्रुटियाँ प्रायः रह जाती हैं....

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    1. आदरणीय डॉ.श्याम गुप्ता जी, आपका आगमन मेरे लिये अति आनंद का विषय है. आपके उत्साहवर्द्धन से नवीन उर्जा प्राप्त हुई. भाषिक व्याकरणीय दोष सहर्ष स्वीकार करता हूँ. इस हेतु हृदय से आभारी हूँ. सवैया छंद पर विगत कुछ समय से ही लिखना प्रारम्भ किया है.यह सच है कि गण पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित रहा.आपसे विनम्र अनुरोध है कि मेरी पिछली पोस्ट में भी दो-तीन सवैया हैं. कृपया उनके गुण-दोष से भी अवगत कराने का कष्ट करेंगे. आपका पुन: हृदय से आभार प्रकट करता हूँ.

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  22. नारी – मत्तगयंद छंद सवैया
    तू जग की जननी बनके, ममता दुइ हाथ लुटावत नारी
    नेहमयी भगिनी बनके, यमुना - यम नेह सिखावत नारी
    शैलसुता बन शंकर का, तप-जाप करे सुख पावत नारी
    हीर बनी जब राँझन की, नित प्रेम -सुधा बरसावत नारी ||

    तू लछमी सबके घर की , घर - द्वार सजात बनावत नारी
    तू जग में बिटिया बनके , घर आंगन को महकावत नारी
    कौन कहे तुझको अबला,अब जाग जरा मुसकावत नारी
    वंश चले तुझसे दुनियाँ, तुझ सम्मुख शीश नवावत नारी ||

    नारी ब्रह्मा से बड़ी है वह तो सिर्फ सृष्टि का जनक है जेनरेटर है नारी पालक रूप विष्णु भी है कल्याणकारी शिव भी है .अपने अनजाने और अज्ञान वश कन्या भ्रूण ह्त्या करने वाले रुकें और सोचे .

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  23. हमारा आदर्श तो अर्द्ध -नारीश्वर का रूपक नटराज ही रहें हैं .पुरुष में नारीत्व और नारी में पुरुषत्व होता है .पुरुष तो जैविक दृष्टिसे भी नारी गुणसूत्र एक्स लिए है वह (एक्स और वाई ) का जमा जोड़ है नारी एक्स और एक्स है .पेशीय बल प्रधान है पुरुष ,स्थूल रूप ज्यादा है नारी ऊर्जा का सूक्ष्म रूप का, प्रतीक है .पुरुष केवल जनक रूप ब्रह्मा है ,नारी पालक रूप विष्णु और कल्याण -कारी शिवरूप भी है .पेशीय बल कम है उसमें .गर्मी सर्दी सहने की ताकत ज्यादा .दोनों मिलकर ही परस्पर पूर्णता को प्राप्त होते हैं .

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  25. नारी अब बलवान है ,पुरुष कांध टकराय
    पुरषों की मरदानगी, पल में धूल चटाय
    क्षेत्र समय औ काल में,नारी वर्जित नाय
    घर में चूल्हा फूंकती, रण कौशल दिखलाय
    काल बदलता जब गया नारी मान गवाँय
    शासक दुर्जन जब बने, नारी भोग बनाय
    पढना लिखना छिन गया छीना सब अधिकार
    रूप पदमिनी धार के, दुर्गावती अवतार
    रानी झांसी ने किया,जुल्मों का प्रतिकार
    बंदूकें भी झुक गई, रानी की तलवार

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  26. तू लछमी सबके घर की , घर - द्वार सजात बनावत नारी
    तू जग में बिटिया बनके , घर आंगन को महकावत नारी

    इस क्लासिकल छंद में आपने सुंदर भावों के मेल से एक श्रेष्ठ रचना का सृजन किया है।
    बधाई, निगम जी।

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  27. इस कविता से पता चलता है कि आपके मन में महिलाओं के लिए खास जगह है। स्त्रियों को ध्यालन में रखकर लिखी गई कविता बेहतरीन है। इस रफ्तर भरी सरपट भागती हुई जिंदगी में सित्रयों ही हैं जिन्हों ने अपने यहां संस्कृरति का कुछ हिस्सा संभाल कर रखा है। जबकि यह भी सच है कि सित्रयां हाशिये पर पड़ी है।

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  28. नारी की कुंडलियां कुंडल समान शोभा पा रही हैं । रविकर जी की और आपकी नोक झोंक काव्य-जुगलबन्दी तो बहुत ही प्यारी है । नारी भी इन्सान है कभी जल है तो कभी आग ।

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  29. एक उत्कृष्ट रचना हेतु आभार अरुण जी !

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  30. बहुत सुन्दर रचना , इसकी भाषा से इसकी सुंदरता में और निखर आया है |

    सादर
    -आकाश

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  31. उत्कृष्ट जानकारी एवं श्रेष्ठ रचनाओं हेतु,हार्दिक आभार एवं वंदन अरुण जी ।
    सादर
    श्याम मोहन नामदेव

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