दोहा छन्द - बेला के फूल
स्पर्धा थी सौंदर्य की, मौसम था प्रतिकूल
सूखे फूल गुलाब के, जीते बेला फूल |
चली चिलकती धूप में, जब मजदूरन नार
अलबेली को देख कर, बेला मानें हार |
हरदम हँसता देख कर, चिढ़-चिढ़ जाये धूप
बेला की मुस्कान ने, और निखारा रूप |
पहले गजरे की महक, कैसे जाऊँ भूल
सुधियों में अब तक खिले, अलबेला के फूल |
मंगल-बेला में हुआ, मन से मन का ब्याह
मन्त्र पढ़े थे नैन ने, बेला बना गवाह |
बेलापुर से रामगढ़, चले बसंती रोज
बेला का गजरा लिये, वीरू करे प्रपोज |
- अरुण कुमार निगम
स्पर्धा थी सौंदर्य की, मौसम था प्रतिकूल
सूखे फूल गुलाब के, जीते बेला फूल |
चली चिलकती धूप में, जब मजदूरन नार
अलबेली को देख कर, बेला मानें हार |
हरदम हँसता देख कर, चिढ़-चिढ़ जाये धूप
बेला की मुस्कान ने, और निखारा रूप |
पहले गजरे की महक, कैसे जाऊँ भूल
सुधियों में अब तक खिले, अलबेला के फूल |
मंगल-बेला में हुआ, मन से मन का ब्याह
मन्त्र पढ़े थे नैन ने, बेला बना गवाह |
बेलापुर से रामगढ़, चले बसंती रोज
बेला का गजरा लिये, वीरू करे प्रपोज |
- अरुण कुमार निगम