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Monday, January 28, 2013
Sunday, January 27, 2013
धीरज मन का टूट न जाये
(चित्र ओपन बुक्स ऑन लाइन से साभार)
ओपन बुक्स ऑन लाइन द्वारा आयोजित चित्र से काव्य तक छंदोत्सव अंक-22
में मेरी छंद चौपाई http://www.openbooksonline.com/
छंद - चौपाई (16 मात्राएँ)
बिटिया हाथ लिये है फाँसी
याद आ गई हमको झाँसी |
आँखों में है भड़की ज्वाला
कौन यहाँ पर है रखवाला |
घूम रहे सैय्याद दरिन्दे
विचरण कैसे करें परिन्दे |
कोई कन्या - भ्रूण सँहारे
कोई बिछा रहा अंगारे |
कहीं नव-वधू गई जलाई
जाने कब से गई सताई |
नैतिक पतन हुआ है भारी
अपमानित होती है नारी |
नैतिक शिक्षा बहुत जरूरी
बिन इसके ज़िंदगी अधूरी |
धीरज मन का टूट न जाये
जल्दी कोई न्याय दिलाये |
इसी आयोजन में अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर मेरी छंदात्मक प्रतिक्रियाएँ
छंद – दोहा
(विधान – प्रथम व तृतीय चरणों (विषम) में 13 मात्राएँ, द्वितीय व चतुर्थ चरणों (सम) में 11 मात्राएँ | अंत में दीर्घ लघु |)
(1)
त्रेता द्वापर काल के,खींच दिये हैं चित्र
दोहे मन को छू रहे , बहुत बधाई मित्र |
(2)
रक्षक ही भक्षक बने , खूब कही है बात
न्याय व्यवस्था पर हुई,छंदों की बरसात |
(3)
अक्षर में चिंगारियाँ , शब्दों में अंगार
भींच गई हैं मुट्ठियाँ,होठों पर ललकार |
(4)
नैतिक शिक्षा लुप्त है, गुम होते संस्कार
कोई तो इस बात पर , थोड़ा करे विचार |
(5)
दोहा और घनाक्षरी , एक रंग दो फूल
भाव उकेरे चित्र के,हमने किया कबूल ||
छंद – कुण्डलिया
(विधान – छ: चरण. प्रथम दो चरण दोहा अर्थात 13-11 मात्राएँ, शेष चार चरण रोला अर्थात 11-13 मात्राएँ, प्रारम्भ में प्रयुक्त शब्द ही कुण्डलिया का अंतिम शब्द होता है.दोहे के दूसरे सम चरण से रोले का प्रारम्भ)
(1)
फाँसी से कमतर सजा , किसे भला मंजूर
नर - पिशाच ये भेड़िये , हैं अपराधी क्रूर
हैं अपराधी क्रूर , इन्हें नहिं बख्शा जाये
न्याय मांगते 'धीर' , हृदय में आग छुपाये
कड़ा बने कानून , चुभे फिर से ना नश्तर
किसे भला मंजूर , सजा फाँसी से कमतर ||
(2)
काँपें दुष्कर्मी सजा , ऐसी दियो सुझाय
अंग-भंग करके उन्हें ,सूली पर लटकाय
सूली पर लटकाय , चढ़ा दें फौरन फाँसी
लेवे दुनियाँ सीख, बात ये नहीं जरा-सी
सिद्ध हुआ अपराध, गला फौरन ही नापें
सजा सुझाई खूब ,जिसे सुन पापी काँपें ||
(3)
भोली जनता सह रही , कैसे कैसे तीर
कुण्डलिया ने खींच दी,उन सबकी तस्वीर
उन सबकी तस्वीर,विविध हैं दृश्य दिखाये
हम अपने ही देश , लग रहे आज पराये
फाँसी फंदा हाथ , दहकती दिल में होली
कैसे - कैसे तीर , सह रही जनता भोली ||
(4)
फाँसी मिलनी चाहिए , सबके मन की साध
दिल्ली का दुष्कर्म तो , है जघन्य अपराध
है जघन्य अपराध , सजा फाँसी का फंदा
सूली पर दो टांग , मिले दुष्कर्मी बंदा
धधक रहा है हृदय , आँख में बसी उदासी
सबके मन की साध, चाहिये मिलनी फाँसी ||
(5)
कोई भी समझे नहीं , नारी को भूगोल
माँ भगिनी बेटी यही , ममता दे अनमोल
ममता दे अनमोल ,कटी हैं क्योंकर पाँखें
नर पिशाच की आज, फोड़िये दोनों आँखें
अम्बरीश के छंद , आतमा पढ़ के रोई
नारी को भूगोल , नहीं समझे अब कोई ||
(6)
कहीं सुलगते प्रश्न हैं,कहीं जेठ की धूप
दिव्य दृष्टि से देखते , संजय चंडी रूप
संजय चंडी रूप , कहीं फाँसी का फंदा
ग्रहण ग्रसे किस ठौर,बड़ा सहमा है चंदा
देखा है हर बार , यहाँ अपनों को ठगते
कहीं जेठ की धूप, प्रश्न हैं कहीं सुलगते ||
(7)
संजय मिश्र हबीब जी, कहते आप सटीक
सीधे - सादे शब्द में , बात बड़ी बारीक
बात बड़ी बारीक , दिशाएँ नई दिखाते
प्रश्न उठाते आप , साथ ही हल बतलाते
मछली की जो आँख , भेद दे वही धनंजय
दिव्य दृष्टि से देख, सके कहलाता संजय ||
(8)
कुंडलियाँ दोनों करे , हैं परिभाषित चित्र
नित बढ़ते अपराध से , सब ही चिंतित मित्र
सब ही चिंतित मित्र, कुकर्मी को हो फाँसी
नहीं नारि के नैन , कभी भी आय उदासी
सदा हँसें आजाद , बाग की सारी कलियाँ
परिभाषित कर चित्र,लिखें बागी कुंडलियाँ ||
छंद - घनाक्षरी
(विधान - यह मनहरण कवित्त कहलाता है.प्रत्येक चरण में 16, 15 अर्थात् कुल 31 वर्ण. अंत में गुरु. 8, 8, 8, 7 वर्णों पर यति)
(1)
अलबेला खत्री भाई ,खूब रची कविताई,
राह नई दिखलाई , जोरदार तालियाँ
दानवों के कर्म देखे ,मानवों के मर्म देखे,
तेवर हैं गर्म देखे , बार -बार तालियाँ
शहीदों का मान रहे , भारत महान रहे,
आन बान शान रहे , हैं हजार तालियाँ
बदनाम हो ना जाये ,फाँसी वाला फंदा हाये,
तरीका भला सुझाये ,बेशुमार तालियाँ ||
(2)
अलग – अलग छंद , आया पढ़के आनंद
शब्द – शब्द मकरंद , रस बरसाया है
वाह रकताले भाई , छंदों में ही कविताई
छंद घनाक्षरी पढ़ , मन भर आया है |
नारियों की लाज रहे , उन्नत समाज रहे
सब ही स्वतंत्र रहें , खूब बतलाया है
पापियों का नाश होवे, दुष्टों का विनाश होवे
दामिनी की मौत ने तो, देश को जगाया है |
(विधान के अनुसार अंत में लघु-गुरु ही आना चाहिये)
छंद - कामरूप
(विधान – चार चरण, प्रत्येक में 9, 7, 10 मात्राओं पर यति ,चरणांत में गुरु व लघु)
इससे बेहतर , चित्र सुंदर , देख पाया कौन
कविता बहे क्या,अब कहे क्या, लेखनी है मौन
आलोक बिखरे, सृष्टि निखरे,नष्ट हों सब पाप
हो हृदय गंगा, बदन चंगा, हम करें यह जाप ||
छंद – रूपमाला ( या मदन छंद)
(चार चरण , प्रत्येक में 14, 10 मात्राओं पर यति देकर कुल 24 मात्राएँ, अंत में दीर्घ व लघु)
सामयिक हैं प्रश्न सारे,क्यों बढ़ा है पाप
दिन ब दिन हालत बुरी है,बढ़ रहा संताप
भावनाओं को समेटे , रूपमाला छंद
सच कहूँ संजय इसे पढ़,आ गया आनंद ||
छंद – मदन
(चार चरण , प्रत्येक में 14, 10 मात्राओं पर यति देकर कुल 24 मात्राएँ, अंत में दीर्घ व लघु)
वाह कितना खूबसूरत , रच दिया है छंद
चित्र परिभाषित है करता , हृदय अंतर्द्वंद
अशोक रक्ताले प्रभु जी , सार्थक हैं भाव
निकलनी ही चाहिये दुख,भँवर से अब नाव ||
छंद – राधेश्यामी
(विधान - मात्रायें 16,16)
भ्राता नीरज का छंद पढ़ा , है शब्द चित्र क्या खूब गढ़ा
आक्रोश दिखा है जोश दिखा, आवेग हृदय में खूब बढ़ा
कानून व्यवस्था की चिंता , परिवर्तन निश्चित लायेगी
इस आशा में है कवि का मन, वह सुबह कभी तो आयेगी ||
छंद - मत्तगयंद (मालती) सवैया
(विधान – हर चरण में 7 भगण (SII) अंत में दो गुरु,कुल 23 वर्ण)
(1)
दीप जले अँधियार मिटे , सब दोषिन को अब होवय फाँसी
छंद लिखे मन भाय गये , सनदीप पटेल न होय उदासी
मोहन देख दशा हमरी , अवतार धरो फिर भारत आवौ
कंस न दम्भ करे फिर से,इस देश की आकर लाज बचावौ ||
(2)
दुर्मिल छंद कहें अति सुंदर , भ्रात अशोक हमें मन भायें
नैतिकता पर जोर दिया, अनिवार्य इसे अब नित्य पढ़ायें
रात जहाँ परभात नहीं , उस ठौर दिया सब लोग जलायें
फौरन दुष्टन को पकड़ें, ततकाल उसे गल-फाँस चढ़ायें ||
छंद – दुर्मिल सवैया
[विधान – प्रत्येक चरण में 8 सगण (IIS) कुल 24 वर्ण]
(1)
जब दुर्मिल छंद पढ़ा हमने , उफ आग हिया झुलसाय गई
मन भाव 'विशाल' बताय रहे , हर बात हमें तड़फाय गई
अब दंड मिले हर दोषिन को , यह मांग जुबां पर आय गई
अपराधहिं के सम मौन सखा,यह बात हमें अति भाय गई ||
(2)
ढिबरी बुझती पर रात सखा , परभात बिना कभु आवत है
मत आस बुझे नहिं प्यास बुझे , विधुना सबको समझावत है
उसके घर में अति देर सही , अनधेर नहीं अब मान जरा
उत न्याय मिले कुछ देर सही,यह सत्य सखा अब जान जरा ||
छंद - त्रिभंगी
(विधान – चार चरण, प्रत्येक में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति ,कुल 32 मात्राएँ)
(1)
रसधार बही है , खूब कही है , अम्बर सौरभ, छाया है
हम हैं आनंदित, बहुत अचम्भित , यह छंदों की, माया है
हम सीख रहे हैं, संग बहे हैं ,पुलकित यह मन, काया है
ज्यों मुरलीधर ने , मन को हरने, गीत प्रेम का, गाया है ||
(2)
सुंदर बहुरंगी , छंद त्रिभंगी , हमने पढ़ कर , यह जाना
है खूब रसीला , छैल छबीला , हमने भी लो , पहचाना
है यह मधुशाला , की मधुबाला, मदिरालय का, पैमाना
दस आठ गिना यह , आठ बाद छ: , है छंदों में, मस्ताना ||
(3)
है चित्र हूबहू , शब्द में लहू , लावा बन कर , बहता है
चिन्तित जग सारा, कौन सहारा,चीख-चीख कर, कहता है
अबला बेचारी , है दुखियारी , हृदय आग - सा , दहता है
ओपन बुक्स ऑन लाइन द्वारा आयोजित चित्र से काव्य तक छंदोत्सव अंक-22
में मेरी छंद चौपाई http://www.openbooksonline.com/
छंद - चौपाई (16 मात्राएँ)
बिटिया हाथ लिये है फाँसी
याद आ गई हमको झाँसी |
आँखों में है भड़की ज्वाला
कौन यहाँ पर है रखवाला |
घूम रहे सैय्याद दरिन्दे
विचरण कैसे करें परिन्दे |
कोई कन्या - भ्रूण सँहारे
कोई बिछा रहा अंगारे |
कहीं नव-वधू गई जलाई
जाने कब से गई सताई |
नैतिक पतन हुआ है भारी
अपमानित होती है नारी |
नैतिक शिक्षा बहुत जरूरी
बिन इसके ज़िंदगी अधूरी |
धीरज मन का टूट न जाये
जल्दी कोई न्याय दिलाये |
इसी आयोजन में अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर मेरी छंदात्मक प्रतिक्रियाएँ
छंद – दोहा
(विधान – प्रथम व तृतीय चरणों (विषम) में 13 मात्राएँ, द्वितीय व चतुर्थ चरणों (सम) में 11 मात्राएँ | अंत में दीर्घ लघु |)
(1)
त्रेता द्वापर काल के,खींच दिये हैं चित्र
दोहे मन को छू रहे , बहुत बधाई मित्र |
(2)
रक्षक ही भक्षक बने , खूब कही है बात
न्याय व्यवस्था पर हुई,छंदों की बरसात |
(3)
अक्षर में चिंगारियाँ , शब्दों में अंगार
भींच गई हैं मुट्ठियाँ,होठों पर ललकार |
(4)
नैतिक शिक्षा लुप्त है, गुम होते संस्कार
कोई तो इस बात पर , थोड़ा करे विचार |
(5)
दोहा और घनाक्षरी , एक रंग दो फूल
भाव उकेरे चित्र के,हमने किया कबूल ||
(विधान – छ: चरण. प्रथम दो चरण दोहा अर्थात 13-11 मात्राएँ, शेष चार चरण रोला अर्थात 11-13 मात्राएँ, प्रारम्भ में प्रयुक्त शब्द ही कुण्डलिया का अंतिम शब्द होता है.दोहे के दूसरे सम चरण से रोले का प्रारम्भ)
(1)
फाँसी से कमतर सजा , किसे भला मंजूर
नर - पिशाच ये भेड़िये , हैं अपराधी क्रूर
हैं अपराधी क्रूर , इन्हें नहिं बख्शा जाये
न्याय मांगते 'धीर' , हृदय में आग छुपाये
कड़ा बने कानून , चुभे फिर से ना नश्तर
किसे भला मंजूर , सजा फाँसी से कमतर ||
(2)
काँपें दुष्कर्मी सजा , ऐसी दियो सुझाय
अंग-भंग करके उन्हें ,सूली पर लटकाय
सूली पर लटकाय , चढ़ा दें फौरन फाँसी
लेवे दुनियाँ सीख, बात ये नहीं जरा-सी
सिद्ध हुआ अपराध, गला फौरन ही नापें
सजा सुझाई खूब ,जिसे सुन पापी काँपें ||
(3)
भोली जनता सह रही , कैसे कैसे तीर
कुण्डलिया ने खींच दी,उन सबकी तस्वीर
उन सबकी तस्वीर,विविध हैं दृश्य दिखाये
हम अपने ही देश , लग रहे आज पराये
फाँसी फंदा हाथ , दहकती दिल में होली
कैसे - कैसे तीर , सह रही जनता भोली ||
(4)
फाँसी मिलनी चाहिए , सबके मन की साध
दिल्ली का दुष्कर्म तो , है जघन्य अपराध
है जघन्य अपराध , सजा फाँसी का फंदा
सूली पर दो टांग , मिले दुष्कर्मी बंदा
धधक रहा है हृदय , आँख में बसी उदासी
सबके मन की साध, चाहिये मिलनी फाँसी ||
(5)
कोई भी समझे नहीं , नारी को भूगोल
माँ भगिनी बेटी यही , ममता दे अनमोल
ममता दे अनमोल ,कटी हैं क्योंकर पाँखें
नर पिशाच की आज, फोड़िये दोनों आँखें
अम्बरीश के छंद , आतमा पढ़ के रोई
नारी को भूगोल , नहीं समझे अब कोई ||
(6)
कहीं सुलगते प्रश्न हैं,कहीं जेठ की धूप
दिव्य दृष्टि से देखते , संजय चंडी रूप
संजय चंडी रूप , कहीं फाँसी का फंदा
ग्रहण ग्रसे किस ठौर,बड़ा सहमा है चंदा
देखा है हर बार , यहाँ अपनों को ठगते
कहीं जेठ की धूप, प्रश्न हैं कहीं सुलगते ||
(7)
संजय मिश्र हबीब जी, कहते आप सटीक
सीधे - सादे शब्द में , बात बड़ी बारीक
बात बड़ी बारीक , दिशाएँ नई दिखाते
प्रश्न उठाते आप , साथ ही हल बतलाते
मछली की जो आँख , भेद दे वही धनंजय
दिव्य दृष्टि से देख, सके कहलाता संजय ||
(8)
कुंडलियाँ दोनों करे , हैं परिभाषित चित्र
नित बढ़ते अपराध से , सब ही चिंतित मित्र
सब ही चिंतित मित्र, कुकर्मी को हो फाँसी
नहीं नारि के नैन , कभी भी आय उदासी
सदा हँसें आजाद , बाग की सारी कलियाँ
परिभाषित कर चित्र,लिखें बागी कुंडलियाँ ||
छंद - घनाक्षरी
(विधान - यह मनहरण कवित्त कहलाता है.प्रत्येक चरण में 16, 15 अर्थात् कुल 31 वर्ण. अंत में गुरु. 8, 8, 8, 7 वर्णों पर यति)
(1)
अलबेला खत्री भाई ,खूब रची कविताई,
राह नई दिखलाई , जोरदार तालियाँ
दानवों के कर्म देखे ,मानवों के मर्म देखे,
तेवर हैं गर्म देखे , बार -बार तालियाँ
शहीदों का मान रहे , भारत महान रहे,
आन बान शान रहे , हैं हजार तालियाँ
बदनाम हो ना जाये ,फाँसी वाला फंदा हाये,
तरीका भला सुझाये ,बेशुमार तालियाँ ||
(2)
अलग – अलग छंद , आया पढ़के आनंद
शब्द – शब्द मकरंद , रस बरसाया है
वाह रकताले भाई , छंदों में ही कविताई
छंद घनाक्षरी पढ़ , मन भर आया है |
नारियों की लाज रहे , उन्नत समाज रहे
सब ही स्वतंत्र रहें , खूब बतलाया है
पापियों का नाश होवे, दुष्टों का विनाश होवे
दामिनी की मौत ने तो, देश को जगाया है |
(विधान के अनुसार अंत में लघु-गुरु ही आना चाहिये)
छंद - कामरूप
(विधान – चार चरण, प्रत्येक में 9, 7, 10 मात्राओं पर यति ,चरणांत में गुरु व लघु)
इससे बेहतर , चित्र सुंदर , देख पाया कौन
कविता बहे क्या,अब कहे क्या, लेखनी है मौन
आलोक बिखरे, सृष्टि निखरे,नष्ट हों सब पाप
हो हृदय गंगा, बदन चंगा, हम करें यह जाप ||
छंद – रूपमाला ( या मदन छंद)
(चार चरण , प्रत्येक में 14, 10 मात्राओं पर यति देकर कुल 24 मात्राएँ, अंत में दीर्घ व लघु)
सामयिक हैं प्रश्न सारे,क्यों बढ़ा है पाप
दिन ब दिन हालत बुरी है,बढ़ रहा संताप
भावनाओं को समेटे , रूपमाला छंद
सच कहूँ संजय इसे पढ़,आ गया आनंद ||
छंद – मदन
(चार चरण , प्रत्येक में 14, 10 मात्राओं पर यति देकर कुल 24 मात्राएँ, अंत में दीर्घ व लघु)
वाह कितना खूबसूरत , रच दिया है छंद
चित्र परिभाषित है करता , हृदय अंतर्द्वंद
अशोक रक्ताले प्रभु जी , सार्थक हैं भाव
निकलनी ही चाहिये दुख,भँवर से अब नाव ||
छंद – राधेश्यामी
(विधान - मात्रायें 16,16)
भ्राता नीरज का छंद पढ़ा , है शब्द चित्र क्या खूब गढ़ा
आक्रोश दिखा है जोश दिखा, आवेग हृदय में खूब बढ़ा
कानून व्यवस्था की चिंता , परिवर्तन निश्चित लायेगी
इस आशा में है कवि का मन, वह सुबह कभी तो आयेगी ||
छंद - मत्तगयंद (मालती) सवैया
(विधान – हर चरण में 7 भगण (SII) अंत में दो गुरु,कुल 23 वर्ण)
(1)
दीप जले अँधियार मिटे , सब दोषिन को अब होवय फाँसी
छंद लिखे मन भाय गये , सनदीप पटेल न होय उदासी
मोहन देख दशा हमरी , अवतार धरो फिर भारत आवौ
कंस न दम्भ करे फिर से,इस देश की आकर लाज बचावौ ||
(2)
दुर्मिल छंद कहें अति सुंदर , भ्रात अशोक हमें मन भायें
नैतिकता पर जोर दिया, अनिवार्य इसे अब नित्य पढ़ायें
रात जहाँ परभात नहीं , उस ठौर दिया सब लोग जलायें
फौरन दुष्टन को पकड़ें, ततकाल उसे गल-फाँस चढ़ायें ||
[विधान – प्रत्येक चरण में 8 सगण (IIS) कुल 24 वर्ण]
(1)
जब दुर्मिल छंद पढ़ा हमने , उफ आग हिया झुलसाय गई
मन भाव 'विशाल' बताय रहे , हर बात हमें तड़फाय गई
अब दंड मिले हर दोषिन को , यह मांग जुबां पर आय गई
अपराधहिं के सम मौन सखा,यह बात हमें अति भाय गई ||
(2)
ढिबरी बुझती पर रात सखा , परभात बिना कभु आवत है
मत आस बुझे नहिं प्यास बुझे , विधुना सबको समझावत है
उसके घर में अति देर सही , अनधेर नहीं अब मान जरा
उत न्याय मिले कुछ देर सही,यह सत्य सखा अब जान जरा ||
छंद - त्रिभंगी
(विधान – चार चरण, प्रत्येक में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति ,कुल 32 मात्राएँ)
(1)
रसधार बही है , खूब कही है , अम्बर सौरभ, छाया है
हम हैं आनंदित, बहुत अचम्भित , यह छंदों की, माया है
हम सीख रहे हैं, संग बहे हैं ,पुलकित यह मन, काया है
ज्यों मुरलीधर ने , मन को हरने, गीत प्रेम का, गाया है ||
(2)
सुंदर बहुरंगी , छंद त्रिभंगी , हमने पढ़ कर , यह जाना
है खूब रसीला , छैल छबीला , हमने भी लो , पहचाना
है यह मधुशाला , की मधुबाला, मदिरालय का, पैमाना
दस आठ गिना यह , आठ बाद छ: , है छंदों में, मस्ताना ||
(3)
है चित्र हूबहू , शब्द में लहू , लावा बन कर , बहता है
चिन्तित जग सारा, कौन सहारा,चीख-चीख कर, कहता है
अबला बेचारी , है दुखियारी , हृदय आग - सा , दहता है
क्या खूब लिखा है, सौरभ जी सत ,साहित शाश्वत ,रहता है ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़) /
विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
Tuesday, January 22, 2013
डॉ.चैतन्य और डॉ.रूपम को शुभ-कामनायें
ज्येष्ठ पुत्र चैतन्य और पुत्र वधू रूपम को शुभ-विवाह की द्वितीय वर्षगाँठ पर हार्दिक शुभकामनायें
रूपम औ’ चैतन्य को , बहुत बधाई आज
जीवन में हर पल करें ,दोनों सुख से राज
दोनों सुख से राज
, यही आशीष
हमारा
सदा दमकता रहे,भाग्य का स्वर्णिम तारा
मंगलमय हो दिवस,तुम्हारी रात हो पूनम
बहुत बधाई आज , प्रिय चैतन्य औ’रूपम ||
निगम परिवारSunday, January 20, 2013
दो बूँद जिनगी के............
श्रीमती सपना निगम
पल्स पोलियो अभियान - जनहित में जारी
दो बूँद जिनगी के , बन जाहे वरदान
बात मोर सुन ले , गाँठ बाँध ले मितान.
अपन नोनी - बाबू के , जिनगी सँवारव
पोलियो अभिशाप हरे , उन ला उबारव
जन - हित के खातिर , चलत हे अभियान
बात मोर सुन ले , गाँठ बाँध ले मितान.
तुरते जनम धरे रहे , वहू ला पियावव
नान नान लइका ला, कोरा मा धर के आवव
पाँच साल तक लइका के करे रहिहौ ध्यान
बात मोर सुन ले , गाँठ बाँध ले मितान.
स्वस्थ रही लइका , सँवर जाही पीढ़ी
देश के बुलंदी के बन जाही सीढ़ी
पोलियो - उन्मूलन बर , चलत हे अभियान
बात मोर सुन ले , गाँठ बाँध ले मितान.
दो बूँद जिनगी के , बन जाहे वरदान
बात मोर सुन ले , गाँठ बाँध ले मितान.
श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
[शब्दार्थ : बन जाहे = बन जाएगा, मितान = मित्र, उन ला = उन्हें, नोनी-बाबू = बेटी-बेटा, वहू = उन्हें भी, पियावव = पिलाइये, नान नान लइका = नन्हें नन्हें बच्चे, कोरा मा = गोद में,मोर = मेरी]
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