Thursday, October 14, 2021

गजल

 "गजल"


झूठ के दौर में ईमान कहाँ दिखता है

शह्र में भीड़ है इंसान कहाँ दिखता है


फ्लैट उग आये हैं खेतों में कई लाखों के

लहलहाता हुआ अब धान कहाँ दिखता है


लोग खामोश हैं सहके भी सितम राजा के

राज दिल पे करे सुल्तान कहाँ दिखता है


छप रहे रोज ही दीवान गजलकारों के

लफ़्ज़ दिखते तो हैं अरकान कहाँ दिखता है


ज़ुल्फ़ रुखसार की बातों का जमाना तो गया

दिल में उठता हुआ तूफान कहाँ दिखता है


हाथ में जिसके है हथियार सियासत उसकी

देह से वो भला बलवान कहाँ दिखता है


जाल सड़कों का 'अरुण' जब से बिछा गाँवों में

संदली प्यार का खलिहान कहाँ दिखता है


रचनाकार - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़

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