Saturday, February 2, 2019

अन्नदाता याद आया

गजल - अन्नदाता याद आया

गजल - अन्नदाता याद आया

गाँव का इक सर्वहारा छटपटाता याद आया।
पाँवों से खिसकी जमीं तो अन्नदाता याद आया।।

एक तबका है रईसी मुफलिसी के बीच में भी
यकबयक उससे जुड़ा कुछ तो है नाता याद आया।।

काठ की हाँडी दुबारा चढ़ रही चूल्हे पे देखो
बीरबल फिर से कहीं खिचड़ी पकाता याद आया।।

सुख में राजाओं की संगत रास आती थी हमेशा
डूबते में कौन है सच्चा विधाता याद आया।।

आजकल बच्चे बहलते ही नहीं हैं झुनझुनों से
क्यों ‘अरुण’ बूढा तुम्हें सीटी बजाता याद आया।।

रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/02/2019 की बुलेटिन, " डिप्रेशन में कौन !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. वाह बहुत सुन्दर रचना।

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