Sunday, July 2, 2017

गजल

शायद असर होने को है...


माँगने हक़ चल पड़ा दिल दरबदर होने को है
खार ओ अंगार में इसकी बसर होने को है |

बात करता है गजब की ख़्वाब दिखलाता है वो
रोज कहता जिंदगी अब, कारगर होने को है |

आज ठहरा शह्र में वो, झुनझुने लेकर नए
नाच गाने का तमाशा रातभर होने को है |

छीन कर सारी मशालें पी गया वो रोशनी
फ़क्त देता है दिलासा, बस सहर होने को है |

अब हकीकत को समझने लग गए हैं सब यहाँ
मुफलिसों की आह का शायद असर होने को है |


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

6 comments:

  1. दिनांक 04/07/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
    आप की प्रतीक्षा रहेगी...

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  2. अब हकीकत को समझने लग गए हैं सब यहाँ
    मुफलिसों की आह का शायद असर होने को है |. वाह ,बहुत सुन्दर और सटीक बात कही है

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-07-2017) को रविकर वो बरसात सी, लगी दिखाने दम्भ; चर्चामंच 2655 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. छीन कर सारी मशालें पी गया वो रोशनी
    फ़क्त देता है दिलासा, बस सहर होने को है |
    बहुत ख़ूब ! क्या बात है ,सुन्दर अभिव्यक्ति आभार। "एकलव्य"

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  5. छीन कर सारी मशालें पी गया वो रोशनी
    फ़क्त देता है दिलासा, बस सहर होने को है |
    बहुत ही बेहतरीन रचना । सादर ...

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