Tuesday, July 16, 2013

क्या बिसात है अपनी


गये   तुरंग  कहाँ  अस्तबल  के  देखते हैं
कहाँ से  आये गधे  हैं निकल के देखते हैं

सभी ने  ओढ़  रखी  खाल शेर की शायद
डरे - डरे से  सभी  दल  बदल  के देखते हैं

वही  तरसते यहाँ  चार  काँधों की खातिर
सभी के  सीने पे जो मूँग दल के देखते हैं

वो   आज   थाल   सजाये   हुये   चले  आये
जिन्हें  हमेशा  बिना नारियल के देखते हैं

बड़ों-बड़ों  में  भला  क्या  बिसात है अपनी
अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

(ओपन बुक्स ऑन लाइन तरही मुशायरा,अंक-36 में सम्मिलित  दूसरी गज़ल)

13 comments:

  1. बड़ों-बड़ों में भला क्या बिसात है अपनी
    अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं,,,,

    बहुत उम्दा,सुंदर गजल ,,,वाह !!! क्या बात है,

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

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  2. बड़ों-बड़ों में भला क्या बिसात है अपनी
    अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं
    swyam abhivyakt kar rahi hai aapki bisat .very nice .

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  3. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
    सादर...!

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  4. बढ़िया है भाई जी-
    सादर-

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  5. बड़ों-बड़ों में भला क्या बिसात है अपनी
    अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं ... बहुत बढ़िया..आभार

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  6. गधों को ताज पहना दिया है हमने जब से
    घोड़े पलायन कर गए हैं राजनीति में तब से ।

    बहुत बढ़िया गज़ल

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  7. बड़ों-बड़ों में भला क्या बिसात है अपनी
    अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं ..

    बहुत खूब ... इस उम्दा लाजवाब गज़ल का करिश्मा तो देख लिय अरुण जी ...
    मज़ा आ गया ... हर शेर पे दाद ... भई वाह ...

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  8. वो आज थाल सजाये हुये चले आये
    जिन्हें हमेशा बिना नारियल के देखते हैं

    बहुत बढ़िया ...
    बधाई !

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  9. वो आज थाल सजाये हुये चले आये
    जिन्हें हमेशा बिना नारियल के देखते हैं
    ............आपकी सोच और लेखनी को सादर नमन ..

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  10. सभी ने ओढ़ रखी खाल शेर की शायद
    डरे - डरे से सभी दल बदल के देखते हैं
    ...बहुत सही ..

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  11. बहुत बढ़िया ग़ज़ल !!

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