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Thursday, May 14, 2015

चित्र एक , दोहे अनेक (भाग - २)


























अब स्वभाव से हो रहा, हर मौसम प्रतिकूल
बेटा   तू    बैसाख   में  , सावन   झूला   झूल ||


अपनी फेसबुक में मैंने अपने पोते के फोटो पर एक दोहा लिख कर मित्रों से अनुरोध किया था कि दोहे में अपनी प्रतिक्रया डालें. यह कार्य दो मई से एक श्रृंखला के तौर पर चल रहा है. मित्रों का सराहनीय सहयोग भी मिल रहा है. आइये तीन मई की पोस्ट का आप भी इन दोहों का आनंद लीजिये.
-         अरुण कुमार निगम


बाहु पाश मे है बंधा, पाय पिता का स्नेह.
बारिस हो बैसाख में, सावन रूठे मेह..

अरुण कुमार निगम स्वागत है आदरणीय सूर्यकांत गुप्ता जी

पौधों को भी चाहिए , बेटे जैसा नेह
अनुशासित होंगे तभी, शायद भटके मेह ||
चित्रानुरूप एक प्रयास मेरा भी देखे अरुण जी –

चंचल मन तेरा कहें, लेने दो अब झूल,
माता डरकर कह रही, समय नहीं अनुकूल |

स्वागत है आदरणीय लडिवाला जी,

यही कहाये बाल-हठ, जब अपनी पर आय
बापू हों या मातुश्री, येन केन मनवाय ||


बेटा कसरत खूब कर, समय हुआ अब खार!
पिता बाह में ज्यो लिये, त्यो रखना सहकार!!.....सादर
स्वागत है आदरणीय केवल प्रसाद जी ....

कसरत कस कर कीजिये, कहते मित्र प्रसाद
मधुर - भाव से दे रहे , अपना आशीर्वाद ||


देख समय की धार को, आजा मेरी बाह
सावन आता है अभी, देख उसी की राह |

अति-सुन्दर आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी

बाँहों में आ तात की, देख समय की धार
मौसम है सहमा हुआ , और बहुत लाचार ||


बांध गया किस मोह में, तेरा मोहन पाश,
नेह-नीर है नयन में, बाँहों में आकाश ।

आदरणीय अशोक शर्मा जी, शानदार दोहा........

स्वयं दीप बन विश्व में, फैला ज्ञान-प्रकाश
मुट्ठी में तू बाँध ले, नन्हा है आकाश ||


कसरत कर के बाहु में, भर लूँ शक्ति अपार।
जीने देता है कहाँ, निर्बल को संसार।।

अति उत्तम आदरणीय दिनेश गौतम जी,

पग-पग पर छल-बल यहाँ, और उम्र नादान
ऋषि-मुनियों का देश है, सीख दशोबल ज्ञान ||


बल भरने को बाहु में, करते 'यश' व्यायाम।
धनबल, जनबल, बाहुबल ,बस आते अब काम।।

आदरणीय दिनेश गौतम जी, बिल्कुल सही कहा आपने .....

सेहत ही है श्रेष्ठ धन , बेटा कर व्यायाम
यही बढ़ाये आत्म-बल, कहते लोग तमाम ||


चाचा छोड़ो हाथ तुम, देखो मेरा काम ।
झूला झूलूं झूम कर, करूं खूब व्यायाम ।।

स्वागत है आदरणीय रमेश चौहान जी........

करत करत अभ्यास के, बढ़े आत्म-विश्वास
एहतियात के तौर पर, पापा फिर भी पास ||


पकड़े रखना जोर से, हाथ न जाए छूट ;
भार अगर नहि सह सका,छत जायेगी टूट ||

Thursday, May 7, 2015

चित्र एक-दोहे अनेक





















सुख तेरे मन में  छुपा , बाहर मत तू खोज
सुविधाओं को त्याग कर,खुशी मना हर रोज ।।

अपनी फेसबुक में मैंने दिनांक ०२ मई २०१५ को इस फोटो पर एक दोहा लिख कर मित्रों से अनुरोध किया था कि दोहे में अपनी प्रतिक्रया डालें. मित्रों का सराहनीय सहयोग मिला. आइये आप भी इन दोहों का आनंद लीजिये.
-         अरुण कुमार निगम
मेरी फेसबुक से -
चित्र एक-दोहे अनेक (श्रृंखला - १, दिनांक ०२ मई २०१५)
मित्रों इस चित्र को देख कर प्रतिक्रिया बॉक्स में एक दोहा पोस्ट कर , शीर्षक *चित्र एक-दोहे अनेक* को सार्थक करने में सहयोग प्रदान करें......
[चित्र मेरे पोते यश का है]

सुखसागर की चाह में, व्यर्थ न समय गंवाय.
घर मे सरिता प्रेम की, मन निर्मल कर जाय....
सोलह आने सच कही , गुप्ता जी ने बात
घर में सरिता प्रेम की, करती सुख-बरसात ||
मौसम गरमी प्यार की;पानी हाथ उलीच
'यश 'झूलेगा पालना;दादा -दादी बीच
स्वागत है आदरणीय सुशील यादव जी...........

जिसमें गरमी प्यार की, वह है शीतल झील |
नेह - बूँद से भर गये , आदरणीय सुशील ||
एक दोहा यह भी..........

तन-मन को शीतल करे, बच्चों की मुस्कान
कलुष धुले पावन करे , श्रेष्ठ यही है स्नान
भैया; मन म कई ठन उपजत जही ...यदि लगे रहिबो तौ...बहुत सुंदर अऊ सटीक जमत जात हे...अति सुंदर
बने गोठियाये सूर्यकांत जी , फेर ........

उपजे तेला आन दे , हरियाही मन-खेत
बिन कविता के जिंदगी, लगय सहारा-रेत ||
Saurabh Pandey .
छपक-छपक-छप-छापछा, छपक-छपक-छप-छाप
रोक न पायेंगे मुझे, दादा हों या बाप !!
स्वागत है आदरणीय सौरभ भाई जी.......

अति अनुपम अनुप्रास की, छप-छप छोड़ें छाप
चुप - चुप - चुप हैं बाप जी, दादा भी चुपचाप ||

Bargad ki chaya, joint family me rahne me kitna maja aata hai. Ye usi ka namuna hai

प्रिय मुकेश राठौर जी,

बरगद-छाया दुर्ग में, पोता कनाट-प्लेस
एक जून के बाद ही , लौटेगा इस देस ||

बालक को स्नान करते देख मन मेंआये भाव –
स्नान करे वह हर्ष से, बालक एक अबोध
लगे चपल मन नयन से, आल्हादित सा बोध |

ठण्डा ठण्डा जल मिला, करता छपक छपाक
भरी शरारत आँख में, छोड़ रहा है छाप |

प्यार भरे लगते सभी, नटखट सा अंदाज,
याद करे सब कृष्ण को, देख शरारत आज |

आदरणीय लक्ष्मण लडिवाला जी, स्वागत है................

तीनों दोहे आपके , बिल्कुल खासमखास
शब्द-शब्द से हो रहा, बचपन का अहसास ||

आदरणीय लडिवाला जी, आपके प्रथम दोहे पर..........

श्री लडिवाला आपका , पाकर आशीर्वाद
चपल नयन से बाल मन, प्रकट करे आल्हाद |

आदरणीय लडिवाला जी, आपके द्वितीय दोहे पर..........

शीतल-जल की मस्तियाँ, छप-छप छईं-छपाक
यही शरारत की उमर , छोड़े मन पर छाप ||

आदरणीय लडिवाला जी, आपके तृतीय दोहे पर..........

कान्हा लल्ला साँवरे , नटखट नंदकिशोर
करे शरारत नित्य पर कर दे भव्-विभोर ||

पानी है अनमोल यह, बहे भला क्यूँ व्यर्थ।
यश का यह संदेश है, समझें इसका अर्थ।।
स्वागत है आदरणीय दिनेश गौतम जी,

श्री दिनेश गौतम कहें, तोल मोल के बोल
देता है सन्देश यश , पानी है अनमोल ||
नहाने का मजा तो बस,,गरमी में ही आए
ठंडा पानी डालो मम्मी , मुझे बहुत ही भाए
येल्लो यश, दादी का आशीर्वाद आ गया.........

दादी का दोहा मिला , अनुशंसा के साथ
यश बोले मम्मी अभी, शुरू हुआ है बाथ ||

बचपन हबे बड़ सुघ्घर, यश बेटा गा तोर।
नहावत देख बाल्टी म,आथे सुरता मोर ।।
सुवागत हे आदरनीय नोखसिंह चंद्राकर जी......

सही कहे जी नोख सिंह , रहि-रहि सुरता आय
अपन-अपन लइकाइपन , कोन भला बिसराय ||

तेरी इस मुस्कान में, सारे सुख का मेल,
जल में तू मैं भीगता , कैसा अदभुत खेल।
आदरणीय अशोक शर्मा जी........

स्निग्ध-मुग्ध मुस्कान से , मोती बनता स्वेद
फिर चुटकी में दूर हो , तू-मैं का हर भेद ||

निश्छल बालक की अदा, मन सबका हर्षाय.
सबकी अपनी लेखनी, अनायास चल जाय....
अरुण भैया की सुंदर सोच...इसी बहाने विद्वजनों की सुंदर रचना पढ़ने को मिली.
आदरणीय सूर्यकांत जी, इसीलिये तो मुख्य दोहा लिखा है..........

सुख तेरे मन में छुपा , बाहर मत तू खोज ।
सुविधाओं को त्याग कर,खुशी मना हर रोज ।।