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Monday, January 12, 2015

अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......



अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......

कैसे    कैसे   मंजर    आये   प्राणप्रिये
अपने    सारे    हुये   पराये   प्राणप्रिये |

सच्चे  की  किस्मत  में  तम  ही  आया है
अब  तो  झूठा  तमगे   पाये   प्राणप्रिये |

ज्ञान  भरे  घट  जाने  कितने  दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |


भूखे - प्यासे  हंसों  ने  दम  तोड़  दिया
अब  कौआ  ही  मोती  खाये  प्राणप्रिये |

यहाँ  राग - दीपक  की  बातें करता था
वहाँ   राग – दरबारी   गाये  प्राणप्रिये |
 
सोने    चाँदी   की   मुद्रायें   लुप्त  हुईं
खोटे  सिक्के  चलन  में  आये  प्राणप्रिये |

सच्चाई   के    पाँव   पड़ी   हैं   जंजीरें
अब तो बस भगवान बचाये  प्राणप्रिये |

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)

8 comments:

  1. सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें
    अब तो बस भगवान बचाये प्राणप्रिये |
    ....बहुत सुन्दर सटीक चिंतन ...

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  2. तापन तापे बरखा नहाए हिम को हिम सुहाए..,
    अधजल घघरी छलकत जाए.....

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. उत्तम प्रस्तुति।

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  5. बहुत बढ़िया प्रस्तुति सुन्दर भाव

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