मुझको हे वीणावादिनी
वर दे
कल्पनाओं को तू नए पर दे |
अपनी गज़लों में आरती गाऊँ
कंठ को मेरे तू मधुर स्वर दे |
झीनी झीनी चदरिया ओढ़ सकूँ
मेरी झोली में ढाई आखर दे |
विष का प्याला पीऊँ तो नाच उठूँ
मेरे पाँवों को ऐसी झाँझर दे |
सुनके अंतस् को मेरे ठेस लगे
मेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे |
साँस सौरभ समाए शामोसहर
मुक्त विचरण करूँ वो अम्बर दे |
सूर बन कर चढ़ाऊँ नैन तुझे
इन चिरागों में रोशनी भर दे ||
(तरही ग़ज़ल)
अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
कल्पनाओं को तू नए पर दे |
अपनी गज़लों में आरती गाऊँ
कंठ को मेरे तू मधुर स्वर दे |
झीनी झीनी चदरिया ओढ़ सकूँ
मेरी झोली में ढाई आखर दे |
विष का प्याला पीऊँ तो नाच उठूँ
मेरे पाँवों को ऐसी झाँझर दे |
सुनके अंतस् को मेरे ठेस लगे
मेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे |
साँस सौरभ समाए शामोसहर
मुक्त विचरण करूँ वो अम्बर दे |
सूर बन कर चढ़ाऊँ नैन तुझे
इन चिरागों में रोशनी भर दे ||
(तरही ग़ज़ल)
अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)