प्राची से चली प्रतीची तक
प्रणय तृषित व्याकुल वसुधा
कब क्षितिज मिलन का द्वार हुआ
आकाश-मिलन बस एक क्षुधा.
तारावलियाँ चंचल किरणें
बारात सजी आभास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.
वह सुधा-कलश सी चंद्रकला
सौतन जीवन की क्षणिकायें
वसुधा का रुदन, तृण का आँचल
उस पर बिखरी जल कणिकायें
नक्षत्रों से पलकें झपकीं
विस्मृत सारा उल्लास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
(रचना वर्ष-1974)