मिट रहा है वह तो केवल रूप है
लेख कर्मों का कभी मिटता नहीं.
निज सुखों को वार, जग से प्यार कर
यश कमा, यह धन कभी लुटता नहीं.
मत समझ अपना-पराया, बाँट दे
सुख लुटाने से कभी घटता नहीं.
स्वार्थ-मद में मत कभी हुंकार भर
गर्जना से आसमां फटता नहीं.
तंत्र तन का एक दिन खो जायेगा
मंत्र कर्मों का कभी कटता नहीं.
(मेरे छत्तीसगढ़ी ब्लॉग मितानी-गोठ में नव-रात्रि के अवसर पर दुर्गा जी के दोहों की श्रृंखला पोस्ट की जा रही है,मेरा विश्वास है कि हमारी आंचलिक भाषा छतीसगढ़ी को हिंदी के बहुत करीब पायेंगे. कृपया अवश्य ही पधारें)
mitanigothअरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.