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Saturday, September 10, 2011

अनबुझी – सी प्यास है तू.....


उम्र भर की तलाश है तू
तू जमीं , आकाश है तू.

मौत तुझसे पूछता हूँ
किसलिये उदास है तू.

बुझ सकी ना ज़िंदगी से
अनबुझी-सी प्यास है तू.

आ तुझे बाँहों में भर लूँ
आज कितने पास है तू.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.

(रचना वर्ष – 1980)

17 comments:

  1. भावनाओं की गहरी अभिव्यक्ति ....

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  2. बहुत मर्मस्पर्शी ... बहुत सुंदर ।

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  3. VAAH MAUT KO BHI GALE LAGANE KA JAZBA BAHUT KHOOB HAI

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  4. आ तुझे बाँहों में भर लूँ
    आज कितने पास है तू ..
    वाह अरुण जी ... कमाल की गज़ल और बेहद खूबसूरत शेर .. मज़ा आ गया पढ़ के ...

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  5. बुझ सकी ना ज़िंदगी से
    अनबुझी-सी प्यास है तू.

    आपको बहुत बहुत बधाई --
    इस जबरदस्त प्रस्तुति पर ||

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  6. बुझ सकी ना ज़िंदगी से
    अनबुझी-सी प्यास है तू....

    Lovely expression !

    .

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  7. उम्र भर की तलाश है तू
    तू जमीं , आकाश है तू.

    मन को छू लेने वाली रचना...

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  8. कही दूर तक मन को छु गयी रचना बधाई

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  9. मौत तुझसे पूछता हूँ
    किसलिये उदास है तू....

    क्या बात है अरुण भाई....
    सादर साधुवाद...

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  10. सुन्दर रचना |

    मेरे भी ब्लॉग में पधारें |
    मेरी कविता

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  11. कोमल भावनाएं ..सुन्दर प्रस्तुति

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  12. बेहतरीन रचना....

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